कोरोना वायरस से ठीक होने वालों और मरने वालों में बस ये है एक बड़ा अंतर

Coronavirus Study: कोरोना वायरस से ठीक होने वालों और मरने वालों में बस ये है एक बड़ा अंतर
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प्रतिकात्मक फ़ोटो

कोरोना हो या फिर कोई अन्य बीमारी, जब कोई बैक्टीरिया या वायरस हमारे शरीर पर हमला करता है तो हमारी इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता उससे लड़ती है। हमारे शरीर की इम्यूनिटी वायरस से मजबूत रही तो हम बीमार नहीं होते हैं और कमजोर हुई तो हम वायरस से संक्रमित हो जाते हैं। कोरोना वायरस के खिलाफ भी ऐसा ही हो रहा है। तभी डॉक्टर, वैज्ञानिक और अन्य विशेषज्ञ शुरुआत से ही कोरोना से बचाव के लिए इम्यूनिटी बनाए रखने और इसे बढ़ाने की सलाह देते आ रहे हैं। स्वास्थ्य एजेंसियों की मानें तो कोरोना से होने वाली मौत के मामले पहले की अपेक्षा कम हुए हैं। इससे संक्रमित होने वाले लोगों में से महज कुछ फीसदी लोगों की ही मौत हो रही है। लेकिन ये मौतें आखिर हो क्यों रही है?

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दरअसल, हर व्यक्ति में बीमारियों से मुकाबला करने की क्षमता अलग-अलग होती है। कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता भी लोगों में अलग-अलग होती है और ये काफी हद तक लोगों की  इम्यूनिटी पर निर्भर करता है। हाल ही में आई एक नई रिसर्च स्टडी में कहा गया है कि कोरोना वायरस के मरीजों की जिंदगी और मौत की एक बड़ी वजह इम्यूनिटी हो सकती है। कारण कि हर मरीज का इम्यून सिस्टम अलग-अलग तरीके से काम करता है।


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वायरस फ़ोटो

अमेरिका की पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी अस्पताल के शोधकर्ताओं ने यह रिसर्च स्टडी की है। इसमें शोधकर्ताओं ने बताया है कि जब शरीर पर किसी वायरस का हमला होता है, तो हमारा इम्यून सिस्टम इससे निपटने के लिए टी कोशिकाओं का निर्माण करता है। ये टी कोशिकाएं ज्यादातर दो स्वरूपों में तैयार होती हैं। पहला, जो वायरस से बचाने का काम करती है, इन्हें सहायक कोशिकाएं भी कहते हैं। और दूसरा जो वायरस को मारती हैं, जिन्हें किलर कोशिकाएं कहा जाता है।

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मानव प्रतीकात्मक फ़ोटो

रिसर्च जर्नल साइंस में प्रकाशित इस शोध अध्ययन के मुताबिक, किलर कोशिकाएं जहरीले केमिकल यानी रसायनों के जरिए वायरस को मारती हैं। लेकिन लेकिन इस काम को वे प्रभावी ढंग से कर सकें, इसके लिए उसे सहायक कोशिकाओं के साथ सही तरीके से समन्वय की जरूरत पड़ती है। यानी सहायक कोशिकाओं की भी इसमें अहम भूमिका होती है। 


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फ़ाइल फ़ोटो - नर्स 

पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी अस्पताल के शोधकर्ताओं के मुताबिक, किलर कोशिकाओं और सहायक कोशिकाओं के समन्वय से ही हमारा शरीर कोरोना वायरस से ठीक तरीके से लड़ पाता है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं को कोरोना वायरस से संक्रमित कई गंभीर मरीजों में कोशिकाओं का टीमवर्क नहीं दिखा। ऐसा नहीं हो पाना कई मरीजों की मौत का कारण बना।


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फ़ाइल फ़ोटो-कोरोना वायरस टेस्ट

साइंस पत्रिका में प्रकाशित इस स्टडी के अनुसार शरीर में तीन तरह के 'इम्यूनोटाइप्स' होते हैं। टीम ने पाया कि पहले इम्यूनोटाइप्स में कुछ कोरोना मरीजों में सहायक कोशिकाओं की संख्या ज्यादा थी, जबकि किलर कोशिकाएं दबी रह गई थीं। इसका तात्पर्य यह है कि वायरस के जोखिम का अंदाजा होने के बावजूद शरीर में इनसे प्रभावी ढंग से लड़ने वाली कोशिकाएं बहुत कम थीं।


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फ़ाइल फ़ोटो

दूसरे इम्यूनोटाइप में किलर कोशिकाओं की संख्या ज्यादा रहती है। यानी वह वायरस को बेहतर तरीके से नष्ट कर सकती हैं। लेकिन इनमें सहायक कोशिकाओं की कमी होने के कारण वायरस से लड़ने के लिए दोनों के बीच समन्वय नहीं बन पाता है। स्टडी के अनुसार दूसरे इम्युनोटाइप में कोरोना वायरस से मरीज गंभीर रूप से संक्रमित हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद वह किसी तरह जिंदा बच जाता है।


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प्रतीकात्मक फ़ोटो

तीसरे इम्यूनोटाइप में वैसे लोग होते हैं, जिनका शरीर दोनों में से किसी भी प्रकार की पर्याप्त टी कोशिकाओं का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता। रिसर्च स्टडी के दौरान कुछ लोग इसी टाइप के थे। इस इम्यूनोटाइप का मतलब है कि इनके शरीर में वायरस से लड़ने वाली दोनों तरह की आक्रामक कोशिकाओं की कमी थी, जिसकी वजह से इन लोगों को कोरोना संक्रमण से मौत का ज्यादा खतरा था।


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प्रतिकात्मक फ़ोटो - कोरोना वायरस

पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी अस्पताल में 125 मरीजों पर की गई यह अपने तरह की पहली रिसर्च स्टडी है। हालांकि वैज्ञानिक और शोधकर्ता विभिन्न इम्यून सिस्टम रिस्पॉन्स को पूरी तरह से नहीं समझा पाए। उन्हें इस बात का संदेह था कि कोरोना से होने वाली मौत के मामले संक्रमण के समय  मरीज की सामान्य सेहत से भी जुड़े हो सकते हैं। 

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